परीक्षा गुरु 1882 - लाला श्रींनिवासदास
परीक्षा गुरू को हिन्दी का पहला मौलिक उपन्यास माना जाता है। परीक्षा गुरू उपन्यास के लेखक लाला श्रीनिवासदास जी है। इसका प्रकाशन 1882 ई में हुआ था।
परीक्षा गुरु उपन्यास का सारांश इस प्रकार है -
इस उपन्यास में दिल्ली के एक सेठ मदन मोहन की कहानी बताई गयी है जो कुसंगति के कारण अपना बहुत सा धन बर्बाद कर देता है और फिर अपने एक वकील मित्र ब्रजकिशोर के प्रयासों से कुसंगति से बाहर निकलता है। उपन्यास में लाला मदनमोहन महाजनी संस्कृति के प्रतीक हैं, जो सामंतवादी प्रवृति से जकड़े हुए हैं। इस रचना का मूल भाव यह है कि व्यक्ति को जितनी चादर हो उतना ही खर्च करना चाहिए। कहीं-कहीं इसमे नई शिक्षा, आधुनिक कृषि, औद्योगिकीकरण तथा निज भाषा की उन्नति जैसे विचार भी दिखते है।
लेखक ने इस ओर ध्यानाकर्षण किया हैं कि व्यापार जो कि निरंतर बढ़ती हुई शक्ति है, वह चापलूसों और सामंती अविवेक से घिरी हुई है।हमें अपनी पूंजी का संरक्षण करना चाहिए और देश हित में ही ख़र्च करना चाहिए। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि स्वार्थी मित्र विपत्ति के समय साथ छोड़ देंगे और सच्चा मित्र ही तब साथ निभाएगा अर्थात सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति में ही होती है।
UGC NET पाठ्यक्रम - परीक्षा गुरू उपन्यास
नमस्कार
जवाब देंहटाएंयदि इस उपन्यास कि भी मुख्य पंक्तियां मिल जाती तो लेख और भी लाभकारी होता।
इस जानकारी हेतु आभार।
धन्यवाद
वतर
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