मंगलवार, 7 जुलाई 2020

सिन्दूर की होली नाटक - लक्ष्मीनारायण मिश्र

सिन्दूर की होली  नाटक के महत्वपूर्ण संवाद - 


"आजकल का कानून ही ऐसा है इसमें सजा उसको नहीं दी जाती जो कि अपराध करता है बल्कि सजा तो केवल उसकी होती है जो अपराध छिपाना नहीं जानता"। - मुरारीलाल 


"कानून और कला का साथ नहीं हो सकता है, कानून दंड देगा, कला क्षमा करेगी; कानून संदेह करेगा, कला विश्वास करेगी" - मनोरमा 


"पुरुष आँख के लोलुप होते है, विशेषतः स्त्रियों के संबंध में, मृत्यु शैय्या पर भी सुन्दर स्त्री इनके लिये सब से बड़े लोभ की चीज़ होती है"- मनोरमा 


"पुरुष का सबसे बड़ा रोग है स्त्री है और स्त्री का सब से बड़ा रोग है पुरुष। यह रोग तो मनुष्यता का है और शायद मनुष्य के विकास के साथ ही साथ इसका भी विकास हुआ है।" - मनोरमा 


"किसी को गोली मारना यदि वीरता है तो गोली मार कर बाँसुरी बजाना वीरता से बढ़कर वीरता है और महानता से बढ़कर महानता है"। - मनोज शंकर 



"स्त्री के लिए ज्ञान और विद्या का कोई मूल्य नहीं है। प्लेटों के प्रजातंत्र में कवि को कोई स्थान नहीं दिया गया था... स्त्री के प्रेमतंत्र में बुद्धि और ज्ञान को कोई स्थान नहीं दिया गया है"। - मनोज शंकर


"प्रेम करना विशेषतः स्त्री के लिए कभी बुराई नहीं.. स्त्री जाति की स्तुति केवल इसलिए होती है कि वे प्रेम करती है... प्रेम के लिए ही उनका जन्म होता है। स्त्री चरित्र की सबसे बड़ी विभूति उसका सबसे बड़ा तत्व प्रेम माना गया है।" - मनोज शंकर 



  "विधवाओं के उद्धार के नाम पर आन्दोलन पुरुषों ने उठाया अपने उद्धार के लिए। किसी प्राकृत विधवा से पूछो जो अभी तक पुरूषों के विषैले वातावरण में ना आई हो... देखो उसकी दृष्टि पृथ्वी में गड़ जाती है या नहीं... तुम्हारी समझ से विधवायें समाज के लिए कलंक है पर समझती हूं समाज की चेतना के लिए विधवाओं का होना आवश्यक है"- मनोरमा 


"यह अँग्रेजी विदेशी भावावेश प्रथम दर्शन का प्रेम हमारे देश में चल नहीं सकता" - मनोरमा 


"राम और सीता का, दुष्यंत और शकुन्तला का, नल और दमयन्ती का, अज और इंदुमती का प्रेम प्रथम दर्शन में ही हुआ था। स्त्री का हृदय सर्वत्र एक है, क्या पूर्व क्या पश्चिम क्या देश क्या विदेश"- चंद्रकला 


"तुम्हारा विधवापन तो रूढ़ियों का विधवापन है, वेद मंत्रों का और ब्रह्मभोज का... जिस पुरुष को तुमने देखा नहीं... जिसकी कोई धारणा तुम्हें नहीं है... जिसकी कोई स्मृति तुम्हारी आत्मा को हिला नहीं सकती - उसका वैधव्य कैसा?"- चंद्रकला

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