मंगलवार, 7 जुलाई 2020

त्यागपत्र उपन्यास का सारांश - जैनेन्द्र कुमार

'त्यागपत्र' 1937 - जैनेन्द्र कुमार

'त्यागपत्र' जैनेन्द्र का तीसरा उपन्यास है। त्यागपत्र उपन्यास मेंं मृणाल के अभिशप्त जीवन की कथा कही गयी है। मृणाल के माता- पिता की देहांत हो चुका है। उसका संरक्षण उनके बड़े भाई की देख रेख में होता है। उसकी भाभी का उसपे कठोर नियत्रंण है। प्रमोद मृणाल से पांच साल छोटा भतीजा है। कालेज की पढ़ाई के दौरान मृणाल अपनी सहेली शीला के भाई से प्रेम करने लगती है। इस प्रेम संबंध का खुलासा होने पर पर उसकी भाभी उसे बुरी तरह पीटती है और जल्द ही मृणाल का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति से कर दिया जाता है। पति के प्रति सत्यनिष्ठा रखते हुए मृणाल अपने पूर्व प्रेम-संबंध को बता देती है। उसका पति उसे घर से निकाल देता है। इसके बाद एक कोयला व्यापारी उस पर अनुरक्त होकर उसे अपने यहाँ ले जाता है। वासना की पूर्ति हो जाने के बाद वह भी उसे छोड़ देता है। मृणाल अस्पताल में एक बच्ची को जन्म देती है जो दस महिने बाद ही मर जाती है। इसके बाद मृणाल समाज के सबसे निम्नतम स्तर के लोगों के बीच पहुंच जाती है और घातक बीमारी से पीड़ित होकर कष्टमय जीवन व्यतीत करती है। मृणाल का भतीजा उसे घर ले जाने के लिए जाता है परंतु वह मना कर देती है। अंततः अत्यधिक पीड़ा से उसकी मृत्यु हो जाती है। प्रमोद को इसका इतना गहरा आघात लगता है कि वह ज़ज के पद से 'त्यागपत्र' देकर विरक्त हो जाता है। संक्षेप में यही जैनेन्द्र कुमार के उपन्यास का सारांश है। इस उपन्यास में जैनेन्द्र ने नारी के आत्मदान में ही उसकी मुक्ति के दर्शन को प्रतिपादित किया है। उपन्यास सामाजिक व्यवस्था की अमानवीयता को उजागर करता है।

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